Tuesday 15 June 2021

★★बृजवासी का "निस्वार्थ प्रेम" V / S बोर्ड मैम्बर्स / अधिकारी का "कर्त्तव्य"★★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ■निस्वार्थ प्रेम वही होता है जो ●बिना किसी स्वार्थ / प्रतिफल की आशा के दूसरे के लिए कुछ भी किया जाये , ●दूसरे का सम्मान करें , ●दूसरे के प्रति आदर व सर्मपण भाव रखें ! निस्वार्थ प्रेम करने वाला व्यक्ति हमेशा ●अटूट विश्वास करता है ! ■कर्तव्य का अभिप्राय उन कार्यों से होता है, जिन्हें करने के लिए व्यक्ति ●नैतिक रूप से प्रतिबद्ध होता है। एक ●पारिश्रमिक प्राप्ति के बदले नैतिक बंधन मात्र है। कर्तव्य दो प्रकार के होते हैं- नैतिक तथा कानूनी। नैतिक कर्तव्य वे हैं जिनका संबंध ●मानवता की नैतिक भावना, ●अंत:करण की प्रेरणा या उचित कार्य की प्रवृत्ति से होता है। यदि मानव इन कर्तव्यों का पालन नहीं करता तो स्वयं उसका अंत:करण उसको धिक्कार सकता है, या समाज उसकी निंदा कर सकता है ! कानूनी कर्तव्य वे हैं जिनका पालन न करने पर नागरिक ●राज्य द्वारा निर्धारित दंड का भागी हो जाता है। ■श्रीनाथजी से बृजवासी "निस्वार्थ प्रेम" करते थे इसलिए सन् 1409 से 1506 तक बिना प्रतिफल की आशा के ●97 वर्ष तक सेवा की , उसके उपरान्त महाप्रभु वल्लभाचार्य जी पधारे व श्रीनाथजी के दर्शन की इच्छा जाहिर की तो तुरंत ●बृजवासी सद्दू पाण्डे ने वल्लभाचार्य जी को श्रीनाथजी से मिला दिये ! उसके बाद श्रीवल्लभाचार्य जी के कहे अनुसार श्रीनाथजी की सेवा आजतक निस्वार्थ भाव से कर रहे है ! जब बृज (जतिपुरा) मे संकट आया तो श्रीनाथजी के लिए अपने प्राण तक दिये व अपनी सम्पत्ति छोडकर मथुरा से मेवाड़ तक आये ! यहाँ नाथद्वारा मे आक्रमण हुए तो अपने प्राण देकर रक्षा की ! ●बृजवासीयो का श्रीनाथजी से "निस्वार्थ प्रेम" का 611 वर्षो का इतिहास है ! ■सत्ता से असुरक्षा :- श्रीनाथजी को बृज (मथुरा) मे सन् 1669 मे सत्ता व अधिकारी से असुरक्षा थी व शायद सन् 1959 के बाद भी सत्ता व बोर्ड मैम्बर्स/अधिकारी से असुरक्षा बढ़ रही है ! क्योंकि इतिहास गवाह है कि हमेशा कुछ सत्ताधीशों से ही असुरक्षा होती है जैसे अकबर, शाहजहाँ व जहाँगीर से नहीं औरंगजेब से असुरक्षा थी ! ■सन् 1959 मे नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन श्रीनाथजी की सम्पत्तियों की रक्षार्थ किया था ! इस प्रकार कुछ वर्षो तक सत्ताधीशों ने सुरक्षा भी की, किन्तु वर्तमान के सत्ताधारी, बोर्ड मैम्बर्स व अधिकारियों के काम व व्यवहार से श्रीनाथजी की सम्पत्तियों की सही ढंग से सुरक्षा नहीं हो पा रही है ! इसके अनेकों उदाहरण प्रमाण सहित है ! इसलिए इनसे (सत्ता से) असुरक्षा है ! ■पहले श्रीवल्लभाचार्य जी, उनके पुत्र व पौत्रों ने असुरक्षा की स्थिति मे पलायन किया, किन्तु वर्तमान मे उनके वंशज ऐसी असुरक्षा की स्थिति मे चुप है यानि मौन स्वीकृति है ? CA. Dinesh Sanadhya - 14/06/2020 www.dineshaona.blogspot.com


 

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