Sunday 20 June 2021

★"योग दिवस" पर {5} योग करके स्वयं को निरोगी बनाये ! ★"चुनौती दिवस" पर {5} चुनौतीयो का सामना करके श्रीनाथजी मन्दिर को भी निरोगी बनाये ! 【(१)मन्दिर पर बढ़ता सरकारी नियंत्रण ! (२)मन्दिर की जमीन व धन का दुरुपयोग !(३)वल्लभाचार्यजी के सिद्धांतों की पालना नहीं ! (४)पुष्टिमार्ग की परम्पराओं की पालना नहीं ! (५)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की पालना नहीं !】 ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● नाथद्वारा श्रीनाथजी मन्दिर की 5 चुनौतियाँ :- (१)मन्दिर पर बढ़ता सरकारी नियंत्रण ! (i)सरकारी अधिकारियों के वेतन व अन्य खर्च बढ़ने के बावजूद कोई फायदा नहीं ! क्योंकि सम्पदा व कृषि अधिकारी होने के बावजूद सम्पत्तियों का नुकसान व कृषि आय मे कोई वृद्धि नहीं ! (ii)सरकारी अधिकारी ज्यादातर समय सरकार का या सरकार के हित का कार्य करते है ! (iii)सरकारी हस्तक्षेप होने से मन्दिर को व्यापार बनाने की ओर अग्रसर हो रहे है ! जिससें धार्मिक आस्था व भावनाओं की कमी हो रही है ! (iv)समर्पित कर्मचारियों के स्थान पर ठेका पद्धति से कार्य होने के कारण बृजवासियों को रोजगार से वंचित होना पड़ रहा है ! (v)सरकारी हस्तक्षेप होने से भ्रष्टाचार, धार्मिक आस्थाओं के विपरीत कार्य, धन का दुरुपयोग, परम्पराओं को तोड़ना, नेताओं का अनावश्यक दखल व पारम्परिक कला / संस्कृति के ह्रास आदि की संम्भावनाएँ बढ़ेगी ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (२)मन्दिर की जमीन व धन का दुरुपयोग ! (i)मन्दिर की कई जमीन हाथ से निकल गई, इसका कारण बोर्ड सदस्यो की लापरवाही व महाराज श्री की नासमझी है ! जैसे भीलवाड़ा की जमीन, लालबाग बस स्टैण्ड की जमीन इत्यादि ऐसे कई जमीने है जिसका नुकसान मन्दिर को हुआ है व हो रहा है ! (ii)आय देने वाले पायगा काँटेज को तोड़कर केवल खर्चा बढ़ाने वाला वल्लभ विलास का निर्माण करना ! क्या धन व जमीन का दुरुपयोग नहीं है ? (iii)मन्दिर के होटल, धर्मशाला, दुकानों व अन्य निर्माणो मे पार्किंग की समुचित व्यवस्था नहीं करना ! क्या जमीन व धन का दुरुपयोग नहीं है ! (iv)बड़ा बाजार जैसी मजबूत दो मंजिला स्कूल को तोड़कर, पुनः दो मंजिला स्कूल बनाना ! क्या धन का दुरुपयोग नहीं है ! (v)अनावश्यक निर्माण, अधिकारियों के वेतन, अत्यधिक अंकेक्षण फीस व हिसाब किताब के नाम पर खाना पूर्ति, बगीचे/जमीनों पर प्रभावी नियंत्रण/सदुपयोग नहीं होने से ! क्या धन/जमीन का दुरुपयोग नहीं हो रहा है ? ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (३)वल्लभाचार्यजी के सिद्धांतों की पालना नहीं ! (i)श्रीवल्लभाचार्य जी अपना सर्वश्व "श्रीनाथजी को समर्पण" करने व सेवा करने की आज्ञा दी, किन्तु आजकल स्वयं के साथ श्रीनाथजी का भी "स्वयं को अर्पण" करके सेवा कर रहे है ! (ii)श्रीवल्लभाचार्य जी ने कहा कि श्रीनाथजी "लौकिक कार्य की तरह" की गई सेवा अंगीकार नहीं करते है, भगवद् सेवा "भक्त का भाव" ही एकमात्र साधन है, किन्तु आजकल लौकिक कार्य की तरह ही सेवा कार्य हो रहा है ! (iii)श्रीवल्लभाचार्य जी ने "धर्म के लिए" तीन बार पृथ्वी परिक्रमा की, किन्तु आजकल "धन के लिए" मायानगरी की ही परिक्रमा करने के साथ स्थाई निवास भी बना लिया है ! (iv)श्रीवल्लभाचार्य जी ने केवल एक धोती मे ही अपना जीवन "श्रीनाथजी व जनकल्याण" के लिए अर्पण किया, किन्तु आजकल उन्हें धोती भर के धन "स्वयं के लिए" चाहिए ! (v)श्रीवल्लभाचार्य जी की अन्तिम शिक्षा जो उनके पुत्रों व वैष्णवो को दी, वह शिक्षा तो ग्रहण करनी चाहिए कि "जब तुम प्रभु से बहिँमुख हो जावोगे तब कलिकाल के प्रभाव मे रहने वाले तुम्हारे देह, मन इत्यादि निश्चित रुप से तुम्हारा नाश कर देगे," ऐसा मेरा मंतव्य है । ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (४)पुष्टिमार्ग की परम्पराओं की पालना नहीं ! (i)नाथद्वारा मन्दिर की निजसेवा ब्राह्मण धर्म का पालन करने वालों के द्वारा करने की परम्परा है, जो ब्रह्मसंबंध, जनेऊ, चोटी, तिलक, सात्विक, श्रृद्धा व समर्पण भाव रखे ! किन्तु वर्तमान मे मन्दिर मे ऐसा नहीं हो रहा है ! (ii)नाथद्वारा मन्दिर मे प्रसाद निर्माण पारम्परिक तरीकों से नहीं हो रहा है जैसे - लकड़ी की भट्टी, खरास वाली आटाचक्की व अन्य का पारम्परिक प्रयोग से ! जबकि जगन्नाथपुरी मन्दिर मे आज भी उसी परम्परागत तरीको से प्रसाद बनता भी है व बँटता भी है ! (iii)श्रीनाथजी की निजसेवा की परम्परा प्रथम रुप से बृजवासियों की थी किन्तु वर्तमान मे उसके विपरीत अन्य व्यक्तियों को निज सेवा का कार्य दिया गया ! (iv)श्रीनाथजी मन्दिर मे श्रीकृष्ण भण्डार का अधिकारी बृजवासी बनने की परम्परा व अधिकार है किन्तु वर्तमान मे अन्य व्यक्ति को बना दिया, जो गलत है ! (v)श्रीवल्लभाचार्य जी श्रीनाथजी की सेवक / पुजारी के रुप मे सेवा करने की परम्परा थी तथा सुप्रीम कोर्ट ने भी वल्लभ के वंशजों को "मुख्य पुजारी" ही माना है, किन्तु वर्तमान मे अपने आपको महाराजश्री / मठाधीश बना लिया है तथा श्रीनाथजी व उनकी सम्पत्तियों के भी मालिक बन रहे है, जो गलत है ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (५)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की पालना नहीं ! (i)श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा" मनुष्य के बनाये किसी भी विधान/नियम/कानून व वल्लभ कुल की आज्ञा से ऊपर है ! अतः उसका अक्षरश: पालन होना चाहिए तथा उसमे परिवर्तन या उसके विपरीत कोई भी आज्ञा मान्य नहीं है ! (ii)श्रीनाथजी ने सबसे पहले सन् 1478 (वि.सं.१५३५) को श्रीसद्दू पाण्डे जी (सनाढ्य) को "दूध भोग व निजसेवा" की "साक्षात् आज्ञा" दी ! (iii)श्रीनाथजी ने उसके बाद धर्मदास बृजवासी व अन्य बृजवासियों को "गाय दान, खेलने, सुरक्षा व अन्य सेवा कार्य" करने की "साक्षात् आज्ञा" दी ! (iv)श्रीनाथजी ने सन् 1492 (वि.सं.१५४९) "स्वप्न आज्ञा" श्रीवल्लभाचार्य जी को दी कि श्रीगिरिराज पधारकर "सेवा प्रकार" प्रकट करे ! तदुपरान्त श्रीवल्लभाचार्य जी सन् 1506 (वि.सं.१५६३) श्रीसद्दू पाण्डे जी के घर पधारे, तब दूसरे दिन श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों ने श्रीनाथजी से उनका मिलन कराया ! (v)इस प्रकार श्रीनाथजी ने "साक्षात् आज्ञा" दी कि बृजवासी "सखा भाव से सेवा" व श्री वल्लभ "सेवक भाव से सेवा" करें ! किन्तु श्रीवल्लभाचार्य जी के बाद उनके वंशजों ने "सेवक भाव से सेवा" करने के स्थान पर "स्वामी भाव से सेवा" करने लगे और इस कारण वल्लभ कुल द्वारा बृजवासी से "सखा भाव से सेवा" लेने के स्थान पर उनसे "नौकर भाव से सेवा" लेने लगे, जो गलत व अन्यायपूर्ण है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #16-17-18-19-20 and 21/06/2021 #dineshapna


















 

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