Saturday 5 June 2021

★बृजवासियों के 5 यक्ष प्रश्न व उसकी 26 विवेचना के बाद, अन्तिम निष्कर्ष !★ (1)नाथद्वारा मन्दिर मे श्रीनाथजी की आज्ञा की पालना क्यों नहीं ? (2)बृजवासी (सनाढ्य ब्राह्मण) को श्रीनाथजी की निज सेवा से दूर क्यों किया जा रहा है ? (3)संविधान v/s कानून मे से कौन बड़ा ? (4)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा v/s वल्लभ कुल के नियम मे से कौन बड़ा ? (5)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा को वल्लभ कुल क्यों नहीं मान रहे है ? निष्कर्ष :-★【"श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा" की पालना हो !】★ (१)श्रीनाथजी के प्राकृट्य से 97 वर्ष तक (सन् 1409 से 1506) निज सेवा श्रीसद्दू पाण्डे जी ने (श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा से) की व अन्य बृजवासियों ने ही की ! (२)उसके बाद श्रीसद्दू पाण्डे जी ने निज सेवा श्रीवल्लभाचार्य जी को (सन् 1506 से) (श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा से) दी ! (३)इस प्रकार श्रीनाथजी की निज सेवा का अधिकार (श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा से) सनाढ्य ब्राह्मण व तैलंग ब्राह्मण को ही है ! अतः श्रीनाथजी की आज्ञानुसार सनाढ्य ब्राह्मण को श्रीनाथजी की निज सेवा करनी चाहिए ! (४)श्रीनाथजी की आज्ञा की पालना वल्लभ कुल के वंशज नहीं कर रहे है ! अतः उन्हें आज्ञा की पालना करनी चाहिए ! (५)ब्राह्मण संहिता के अनुसार ब्राह्मणो की उत्पत्ति ब्रह्मा जी से हुई ! उसके बाद उनके दो प्रकार हुए, एक "गौड़" (उत्तरी भाग मे रहने वाले) दूसरे "द्रविड़" (दक्षिण भाग मे रहने वाले) ! (६)गौड़ के पांच प्रकार व द्रविड़ के पांच प्रकार हुए, इस प्रकार कुल 10 प्रकार के ब्राह्मण है ! सनाढ्य ब्राह्मण "गौड़" है व तैलंग ब्राह्मण "द्रविड़" है ! (७)ब्राह्मण के गुण :- रिजुः तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलाे जितेन्र्दियः। दाता शूर दयालुश्च ब्राह्मणाे नवभिर्गुणै: ! 1- रिजु: सरल 2- तपस्वी 3- सन्तोषी 4- क्षमावान 5-इन्द्रियों का निग्रह करने वाला 6- दान करने वाला 7- बहादुर 8- दयालु 9- अभय रहे ! तो एक "तैलंग" ब्राह्मण कैसे अन्य ब्राह्मण "गौड़" के अधिकार छिन सकता है ! (८)श्रीनाथजी मन्दिर मे वल्लभाचार्य जी के वंशज व "तैलंग" ब्राह्मण एक "गौड़" ब्राह्मण के साथ अन्याय करने के साथ श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा का उल्लंघन करते हुए सनाढ्य ब्राह्मण को श्रीनाथजी की निज सेवा से विमुख करने का जघन्य अपराध कर रहे है ! (९)श्रीसद्दू पाण्डे जी (सनाढ्य ब्राह्मण) व श्रीवल्लभाचार्य जी (तैलंग ब्राह्मण) दोनों को सेवा की "श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा" हुई ! तो दोनों को श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा का समान अधिकार है ! (१०)उसके बाद वल्लभ कुल ने निज सेवा व सुरक्षा के अधिकारो से सनाढ्य ब्राह्मण को दूर कर दिया ! इससे भी आगे बृजवासियों को सुरक्षा (बोर्ड मैम्बर्स) के कार्य से भी वंचित कर दिया, जो सर्वथा गलत है ! (११)इस प्रकार वल्लभ कुल श्रीनाथजी की निज सेवा का अधिकार केवल द्रविड़ ब्राह्मणों (तैलंग, सांचिहर, औदिच्य व गिरनारा) तक सिमित करना व सुरक्षा का कार्य केवल अपने चहेते व्यक्तियों (बोर्ड मैम्बर्स) को ही देना, सही नहीं है ! (१२)पुष्टि ज्ञान, पुष्टि परम्पराओं के निर्वहन हेतु वैलनाडू महासभा, ज्ञान हेतु उपाध्याय, गुरु व विद्धानों की व्यवस्था थी, जिनकी उपस्थिति को समाप्त प्रायः करना, सही नहीं है ! "ज्ञान का बुद्धि पर नियंत्रण विवेकपूर्ण निर्णय हेतु आवश्यक है !" (१३)नाथद्वारा मन्दिर मे महाराजश्री केवल पुजारियों के मुखिया (Head of Priest) है ! इसलिए एक पुष्टि मार्ग के विद्धान ब्राह्मणों की महासभा बनानी चाहिए जो सही मार्गदर्शन दे, पुष्टि परम्पराओं का संरक्षण करें व पुष्टि ज्ञान का प्रचार प्रसार करें ! (१४)सनाढ्य ब्राह्मण को श्रीनाथजी की निजी सेवा करने के अधिकार को वापस लौटाये व सुरक्षा का अधिकार बृजवासियों को लौटाकर, उन्हें बोर्ड मैम्बर्स बनाये ! (१५)पुष्टि मार्ग की कला व विधाओ (हवेली संगीत, कीर्तन, चित्रकला, ज्ञान, संस्कृत व संस्कृति) को आगे बढ़ाने हेतु समुचित प्रयास करें व उसके लिए गौड़ व द्रविड़ ब्राह्मणों का सहयोग ले ! (१६)श्रीनाथजी मन्दिर मे दर्शन, सेवा व प्रसाद व्यवस्था सुधारने, परम्पराओं को बचाने, धन व सम्पत्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए श्रीकृष्ण भण्डारी, वित्त विभाग, आँडिट व बोर्ड सदस्यों मे बृजवासियों की उपस्थिति अनिवार्य रुप से सुनिश्चित की जानी चाहिए ! (१७)संविधान बड़ा होता है क्योंकि कोई भी कानून संविधान के अन्तर्गत ही बनता है तथा कोई भी कानून संविधान के विपरीत नहीं बनाया जा सकता है ! (१८)संविधान मे संशोधन केवल संविधान बनाने वाले ही कर सकते है ! (१९)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा सबसे बड़ी है तथा वल्लभ कुल के नियम भी श्रीनाथजी की आज्ञा के विपरीत नहीं बनाये जा सकते है ! (२०)श्रीनाथजी की आज्ञा मे संशोधन केवल श्रीनाथजी ही कर सकते है ! (२१)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा मनुष्य के बनाये किसी भी विधान/नियम/कानून से ऊपर है ! (२२)श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा" मनुष्य के बनाये किसी भी विधान/नियम/कानून व वल्लभ कुल की आज्ञा से ऊपर है ! (२३)श्रीनाथजी ने सबसे पहले श्रीसद्दू पाण्डे जी (सनाढ्य) को "निज सेवा व दूध भोग" की "साक्षात् आज्ञा" की ! (२४)श्रीनाथजी ने उसके बाद धर्मदास बृजवासी व अन्य बृजवासियों को गाय दान, सेवा, खेलने, सुरक्षा व अन्य कार्य करने की "साक्षात् आज्ञा" की ! (२५)श्रीनाथजी ने तदुपरान्त श्रीवल्लभाचार्य जी को श्रीगिरिराज पधार सेवा प्रकार प्रकट करने की "स्वप्न आज्ञा" की ! (२६)अतः उसके बाद वल्लभ कुल को कोई अधिकार नहीं है कि श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा" का उल्लंघन कर "सनाढ्य व बृजवासियों" को उनके अपने अधिकारों से वंचित करें या उसमें कमी करें ! ऐसा करना श्रीनाथजी की आज्ञा का उल्लंघन है, जो श्रीनाथजी के सेवक (महाराज श्री) को नहीं करना चाहिए ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #06/06/2021 #dineshapna












 

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